जिन्दगी में कई घटनाएँ भुलाई नहीं जा सकतीं। इन्हीं में से वो फरवरी २००८ की १३ तारीख है। मैं पटना पुणे एक्सप्रेस से खंडवा स्टेशन पहुँच रहा था जब मुझे पुणे, मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य स्थानों में शिवसेना के गुंडों द्वारा उत्तर भारतीयों के साथ मार-पीट की सूचना अपने एक मित्र से फ़ोन पर मिली। खैर गाड़ी अगली सुबह पुणे स्टेशन पहुंची। मैं वह का दृश्य देख कर अवाक् था। मैं भारत पाकिस्तान विभाजन के समय हुई त्रासदी को हुबहू देख पा रहा था। पूरे स्टेशन पर अफरा तफरी का माहौल था। पुणे से वापस जाने वाले उत्तर भारतीय लोगों से स्टेशन अटा पड़ा था और वहाँ पाँव रखने की भी जगह नहीं थी। आरपीएफ के लोग स्टेशन परिसर में सुरक्षा देने की कोशिश कर रहे थे। किसी तरह कुछ मराठी दोस्तों की सहायता से मैं अपने किराये के मकान पर पहुँचा, वहां से ड्यूटी के लिया गया और वापस अगले दिन पुणे स्टेशन पर लोकल ट्रेन के लिए पास लेने गया। मैं अभी लाइन में ही था तभी शिवसेना के कुछ गुंडे हुडदंग मचाते हुए स्टेशन की तरफ आये। उत्तर भारतीयों में खौफ चरम पर पहुँच गया था और वे अपना सारा सामान, जूते- चप्पल और यहाँ तक कि कुछ लोग अपने बच्चों को वहीँ छोड़ कर जिसको जहाँ जगह मिली, भागने लगे। कितने ही लोग स्टेशन परिसर में लगी लोहे की रेलिंग पार करते हुए गिर गए और उन्हें चोटें आयीं। करीब आधे घंटे तक भगदड़ मची रही तब जाकर आरपीएफ और पुलिस ने मिलकर लोगों को आश्वस्त किया। ऐसी कई घटनाएँ अगले कुछ महीनों में हुईं। इन घटनाओं ने हमारे घटिया राजनीतिज्ञों कि मानसिकता को मेरे सामने पहली बार इतने प्रखर रूप में स्पष्ट किया।
एक युवा जिसके कुछ सपने हैं, कुछ विशिष्ट विचार एवं संकल्पनाएँ हैं, जिसकी कुछ प्रतिमाएँ अभी सामने आनी बाकी हैं और जिसकी चाहत है अपने चारों ओर एक सकारात्मक बदलाव लाने की। यह मेरी डिजिटल डायरी है जिसे आप भी पढ़ सकते हैं। वैसी बातें जिन्हें मैं सबको बताना चाहूँ या जिन्हें व्यक्त करने के लिए एक अदद मित्र की जरूरत पड़े दोनों ही इसमें मिल जाएँगी। हो सकता है इसके कुछ पोस्ट से आप सहमत न हों लेकिन यह मेरे पोस्ट के समय विशेष पर मेरी विचारधारा को इंगित करता है और आप इसे इसी नजरिये से लें। धन्यवाद।
Wednesday, March 26, 2014
Saturday, March 22, 2014
ये लो फिर आ गए हम!
उम्मीद है अब आपसे बात होती रहेगी.
Labels:
दिल की...
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Patna, Bihar, India
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