Sunday, July 17, 2011

आत्म निर्माण सत्संकल्प

1. हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेँगे।
2. शरीर को भगवान का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा अयोग्य की रक्षा करेंगे।
3. मन को कुविचारोँ और दुर्भावनाओँ से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था बनाए रखेंगे।
4. इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।
5. अपने आपको समाज का एक अंग मानेँगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
6. मर्यादाओँ को पालेँगे, वर्जनाओँ से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
7. समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेँगे।
8. चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
9. अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
10. मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओँ एवं विभूतियोँ को नहीं, उसके सद्‌विचारोँ और सत्कर्मोँ को मानेँगे।
11. दूसरों के साथ वह व्यवहार नहीं करेंगे जो हमें अपने लिए पसंद नहीं।
12. नर- नारी आपस में पवित्र दृष्टि रखेंगे।
13. संसार में सत्प्रवृत्तियोँ के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
14. परंपराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे।
15. सज्जनोँ को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
16. राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, संप्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव नहीं करेंगे।
17. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा
18. हम बदलेँगे- युग बदलेगा, हम सुधरेँगे- युग सुधरेगा, इस तथ्य पर हमारा पूर्ण विश्वास है।

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