एक युवा जिसके कुछ सपने हैं, कुछ विशिष्ट विचार एवं संकल्पनाएँ हैं, जिसकी कुछ प्रतिमाएँ अभी सामने आनी बाकी हैं और जिसकी चाहत है अपने चारों ओर एक सकारात्मक बदलाव लाने की। यह मेरी डिजिटल डायरी है जिसे आप भी पढ़ सकते हैं। वैसी बातें जिन्हें मैं सबको बताना चाहूँ या जिन्हें व्यक्त करने के लिए एक अदद मित्र की जरूरत पड़े दोनों ही इसमें मिल जाएँगी। हो सकता है इसके कुछ पोस्ट से आप सहमत न हों लेकिन यह मेरे पोस्ट के समय विशेष पर मेरी विचारधारा को इंगित करता है और आप इसे इसी नजरिये से लें। धन्यवाद।
Monday, August 22, 2011
हमारी हरिद्वार एवं जम्मू की यात्रा- 2
हरिद्वार से जम्मू के लिए हम कुल सात लोग थे- छः बड़े और एक अनुष्का। शाम के करीब साढ़े पाँच बजे गाड़ी आई। आधे घंटे के अपने विराम के बाद गाड़ी चली। हम कुछ देर तक हरिद्वार को पीछे छूटते हुए देखते रहे उसके बाद खाने पीने का कार्यक्रम शुरू हुआ, हाँ पीने में सिर्फ पानी का ही प्रावधान था। भोजन का कार्यक्रम जल्दी इसलिए शुरू करना पड़ा क्योंकि हम जम्मू सुबह पाँच बजे पहुँचने वाले थे इसलिए उससे पहले नींद पूरी होना जरूरी था। थके थे इसलिए जब नींद खुली तो गाड़ी जम्मू स्टेशन पहुँचने वाली थी। हरिद्वार से जम्मू के लिए यह एक ही सीधी गाड़ी है- हेमकुंत एक्सप्रेस। इस गाड़ी का समय थोड़ा असुविधाजनक है- हरिद्वार में भी और जम्मू में भी। सुबह जब गाड़ी जम्मू पहुँची तो सब शौचादि जैसे नित्य क्रियाओं के बेचैन दिखाई दे रहे थे लेकिन सुबह पाँच बजे हम शौचालय कहाँ खोजेँ? मजबूर होकर लोगों को स्टेशन पर खड़ी गाड़ी में ही अपना काम निपटाना पड़ा। हमने भी लोगों का अनुसरण किया। जम्मू आने का उद्देश्य था माँ वैष्णो देवी के दर्शन करना लेकिन उससे पहले स्नान आदि करने जैसे जरूरी काम निपटाने थे। जम्मू स्टेशन के ठीक बाहर दाहिनी ओर श्री माँ वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड का 'वैष्णवी धाम' है जहाँ दर्शनार्थियोँ के ठहरने की व्यवस्था है। हम सबसे पहले वहीँ पहुँचे लेकिन हमें निराशा ही मिली। वहीँ चेक इन और चेक आउट समय सुबह नौ बजे है। मुझे यह समझ में नहीं आया कि देश के कोने कोने से आने वाले भक्त इस समय का ध्यान कैसे रख पाएँगे। और ऐसे में यह व्यवस्था उनकी सहायता और बीचौलियोँ से बचाव कैसे कर रही है। आखिर हमने सीधे कटरा जाने का निर्णय किया लेकिन सामान के जाने का एक ही रास्ता है- टैक्सी बुक करें। सो हमने किया। एक और बात- यदि आप टैक्सी स्टैंड जाएँगे तो पाँच आदमी के कम से कम साढ़े आठ सौ रुपए खर्च करने पड़ेंगे लेकिन बाहर से यही टैक्सी छः सौ रुपए में भी मिल जाएगी। किसी धोखा की संभावना नहीं है। हमने भी किया। रास्ते में ही जबरदस्त बारिश शुरू हो गई। ड्राइवर ने बताया कि पिछले तीन दिनों से भू स्खलन के कारण रास्ता बंद था, एक दिन पहले ही शुरू हुआ है। हम कटरा पहुँचे तो बारिश जारी थी। हमें मजबूर हो कर महँगे कमरे किराए पर लेने पड़े। नहा धोकर हमने खाना खाया। एक घंटे आराम किया। फिर हम निकलने को तैयार हुए- बारिश में ही। एक अच्छी बात यह है कि कटरा में खास बरसाती मिलते हैं जिन्हें पहन कर आप भीगे बगैर जा सकते हैं। कीमत सिर्फ दस रुपए। इसके अलावा एक सुविधा और भी है- आप होटल से चेक आउट करने के बाद भी उनके क्लोक रूम में अपना सामान रख सकते हैं, निःशुल्क। तो करीब दो बजे हम निकल पड़े माता के भवन की तरफ। यह करीब चौदह या पंद्रह किलोमीटर की यात्रा है। इसे आप अपनी सुविधानुसार पैदल या खच्चर की सहायता से पूरा कर सकते हैं। इसके अलावा पालकी और हैलीकॉप्टर की सुविधा भी है। लेकिन कीमत ज्यादा है कम से कम मेरे लिए। हमारे दल में तीन बुजुर्ग थे और एक बच्ची थी। तीन मझले आकार के थैले भी थे। लेकिन दल में उत्साह पूरा था इसलिए कोई परेशानी नहीं थी। हम पहले कुछ देर तेजी से फिर धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे। जगह जगह जलपान आदि की सुविधा है। सुस्ताने के लिए बेँच लगी हैं। शौचालय आदि भी हैं। बारिश भी जैसे सिर्फ हमारी परीक्षा के लिए ही आई हो। जैसे ही हम होटल से निकले, थोड़ी देर बाद ही बंद हो गई।
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