Thursday, July 28, 2011

दो बच्चों का कानून

बिहार में रेहाना की बर्खास्तगी का मामला उम्मीद के अनुसार ही एक विवाद का स्वरूप
लेता जा रहा है। ये विवाद हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों की कुंठित मानसिक
स्थिति को इंगित करते हैं। देश हित में बनाए गए एक सर्वथा आवश्यक कानून
को जन विरोधी बता कर अपनी गलतियों को अपने फायदे के लिए सही साबित करना
अब इन राजनीतिक लोगों का हथकंडा बन चुका है। अतः इसमें जुटे लोगों में
क्षेत्रीय राजनीतिक लोगों को देखकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। रेहाना जैसे
लोगों के साथ इनको साथ देने वाले लोगों को भी जनहित व देशहित विरोधी
भावनाएँ भड़काने के आरोप में सरकारी दायित्वों से मुक्त कर देना चाहिए और
भविष्य में भी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यदि ऐसा कानून
नहीं है तो उसे बनाया जाना चाहिए। इस मुद्दे को धर्म से जोड़कर बच्चों को
भगवान का आशीर्वाद या अल्लाह की नेमत बताने वाले लोग ऐसे हजारों बच्चों की
सुध क्यों नहीं लेते जो अपने माँ बाप की गलतियों से सड़कों, रेलवे
स्टेशनों और ऐसे अन्य जगहों पर भीख माँगते हैं, उन बच्चों की सुध क्यों
नहीं लेते जो अपना बचपन भी पूरा नहीं कर पाते। क्या अल्लाह के नेमत की
उनके लिए इतनी ही कीमत है? इंसान की गलतियों को भगवान या अल्लाह पर थोपना
उचित नहीं है। ईश्वर ने इंसान को बुद्धि दी है ताकि वो अपना फायदा नुकसान
समझ सके और अपने कर्मों के लिए इंसान खुद ही जिम्मेदार है ईश्वर या
अल्लाह नहीं। आज परिवार नियोजन के कई साधन उपलब्ध हैं। इनमें से जो अपने
और अपने धर्म की मान्यताओं के अनुकूल लगे उन्हें उपयोग करना चाहिए और यदि
ऐसा नहीं करना है तो खुद पर संयम रखना सीखना चाहिए। अपनी जरूरतों को पूरा
करते हुए देश एवं समाज का ध्यान रखना भी जरूरी है। जो मान्यताएँ समय के
हिसाब से बदलती नहीं हैं वे बिखर जाती हैं और अपने मानने वाले को भी
तकलीफ पहुँचाती हैं। आज के समय में हमारे देश में आबादी का विकराल स्वरूप
हमारे विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है। इसे नियंत्रित करने का एकमात्र कारगर
तरीका परिवार नियोजन है और हमें इस तथ्य को समझना ही होगा। इसे बढ़ावा
देने के लिए कड़े कानून भी होने ही चाहिए और इसमें किसी धर्म या मान्यता
का कोई सरोकार नहीं है। रेहाना को अपने निजी फायदे से ऊपर उठकर कार्य
करना
चाहिए। उसे अपनी गलतियों को समझते हुए अन्य लोगों को भी परिवार नियोजन के
लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे देश के साथ मुस्लिम समाज में भी एक
सकारात्मक मिसाल बनेगी। यदि वह सच में समाज सेवा करने को उत्सुक हैं तो
उन्हें ऐसा करना ही होगा, आगे उनकी मर्जी।