Saturday, March 19, 2011

मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान -2

पिछली कड़ी से आगे..

सफलता साहसिकता के आधार पर मिलती है। यह एक आध्यात्मिक गुण है। इसी आधार पर योगी को भी सफलता मिलती है, तांत्रिक को भी और महापुरुष को भी। हर एक को इसी साहसिकता के आधार पर सफलता मिलती है। चाहे वह डाकू क्यों न हो। आप योगी हैं तो अपनी हिम्मत के सहारे फायदा उठाएँगे। नेता हैं, महापुरुष हैं तो भी इसी आधार पर सफलता पाएँगे। यह एक दैवीय गुण है। इसे आप अपनी इच्छा के आधार पर इस्तेमाल कर सकते हैं, यह आप पर निर्भर है। इंसान के भीतर जो विशेषता है, वह गुणों की विशेषता है। देवता अगर किसी आदमी को देंगे तो गुणों की संपदा देंगे। गुणों से क्या हो जाएगा? गुणों से ही होता है सब कुछ। भौतिक अथवा आध्यात्मिक जहाँ कहीं भी आदमी को सफलता मिली है, केवल गुणों के आधार पर मिली है। श्रेष्ठ गुण न हों तो न भौतिक उन्नति मिलने वाली है, न आध्यात्मिक उन्नति मिलने वाली है।
आदमी जितना समझदार है, नासमझ उससे भी ज्यादा है। यह भ्रांति न जाने क्यों आध्यात्मिक क्षेत्र में घुस बैठी है कि देवता मनोकामना पूरी करते हैं, पैसा देते हैं, दौलत देते हैं, बेटा- बेटी देते हैं, नौकरी देते हैं। इस एक भ्रांति ने इतना ज्यादा व्यापक नुकसान पहुँचाया है कि आध्यात्मिका का जितना बड़ा लाभ, जितना बड़ा उपयोग था, संभावनाएँ थीं, उससे जो सुख होना संभव था, उस सारी की सारी संभावना को इसने तबाह कर दिया। देवता आदमी को एक ही चीज देंगे और उन्होंने एक ही चीज दी है; प्राचीन काल में भी और भविष्य में भी। देवता यदि जिंदा रहेंगे, भक्ति यदि जिंदा रहेगी, उपासना क्रम यदि जिंदा रहेगा, तो एक ही चीज मिलती रहेगी और वह है- देवत्व का गुण। देवत्व के गुण अगर आएँ तब आप जितनी सफलताएँ चाहते हैं, उससे हजारों- लाखों गुनी सफलताएँ आपके पास आएँगी।
क्या आप चाहते हैं कि आपको देवत्व के स्थान पर कुछ रुपयों की नौकरी दिलवा दें। किसी देवता, संत के लिए वह नाचीज हो सकती है। लेकिन यदि देवता देवत्व प्रदान करते हैं, तो वह नौकरी आपको लिए इतनी कीमत की करवा सकते हैं कि आप निहाल हो जाएँगे। विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के पास नौकरी माँगने गए थे, पर मिला क्या- देवत्व, भक्ति, शक्ति और शांति। यह क्या चीज थे- गुण। मनुष्य के ऊपर कभी संत कृपा करते हैं, संतों ने कभी किसी को कुछ दिया है तो उन्होंने एक ही चीज दी है- अंतरंग में उमंग। एक ऐसी उमंग, जो आदमी को घसीट कर सिद्धांतों की ओर ले जाती है। जब आदमी के ऊपर सिद्धांतों का नशा चढ़ता है, तब उसका चुम्बकत्व, उसका आकर्षण, उसकी प्रामाणिकता इस कदर सही हो जाती है कि हर आदमी खींचा हुआ चला आता है और हर कोई सहयोग करता है। विवेकानंद को सम्मान और सहयोग दोनों मिला। यह किसने दी थीं- काली ने। काली अगर किसी को कुछ देंगी तो यही चीज देंगी। यदि दुनिया में दुबारा कोई रामकृष्ण जिंदा होंगे या पैदा होंगे, तो इसी प्रकार का आशीर्वाद देंगे, जिससे आदमी का व्यक्तित्व विकसित होता चला जाए। व्यक्तित्व विकसित होगा तो जिसे आप चाहेंगे वह सहयोग करेगा। तब सहयोग माँगा नहीं जाता, बरसता है। आदमी फेंकता जाता है और सहयोग बरसता जाता है। देवत्व जब आता है तो सहयोग बरसता है। बाबा साहब आम्टे का उदाहरण आपके सामने है; जिन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए, अपंगोँ के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया। यह क्या है? सिध्दांत है, आदर्श है और वरदान है। इससे कम में न किसी को वरदान मिला है और न किसी को मिलेगा। भीख माँगने पर देवताओं से न किसी को मिला है और न किसी को मिलेगा।
देवता एक काम करते रहते हैं। क्या करते हैं? फूल बरसाते हैं। रामायण में कोई पचास उल्लेख हैं देवताओं के फूल फहराने के। फूल क्या बरसाते हैं सहयोग बरसाते हैं। फूल किसे कहते हैं? सहयोग को कहते हैं। कौन बरसता है? देवत्व बरसता है जो अभी इस दुनिया में अभी जिंदा है। देवत्व ही दुनिया में जिंदा था और जिंदा ही रहने वाला है। देवत्व मरेगा नहीं। यदि हैवान या शैतान नहीं मर सका तो भगवान क्यों मरने लगा। इंसान, इंसान को देख कर आकर्षित होता है। देवता, देवता को देख कर आकर्षित होते हैं। और श्रेष्ठता को देख कर सहयोग आकर्षित होता है। पहले भी यही होता रहा था, अभी भी होता है और आगे भी होता रहेगा।
देवता कैसे होते हैं? देवता ऐसे होते हैं जो आदमी के ईमान में घुसे रहते हैं और उसके भीतर एक ऐसी हूक, एक ऐसी उमंग और एक ऐसी तड़पन पैदा करते हैं जो सारे के सारे जाल- जंजालोँ को तोड़ती हुई सिध्दांतोँ की ओर, आदर्शों की ओर बढ़ने के लिए आदमी को मजबूर कर देती है। इसे कहते हैं देवता का वरदान। इससे कम में देवता का वरदान नहीं हो सकता। आदमी के भीतर जब गुणों की, कर्मों की, स्वभाव की विशेषता पैदा हो जाती हैं तो विश्वास रखिए तब उसकी उन्नति के दरवाजे खुल जाते हैं। इतिहास में जितने भी आदमी सफल हुए हैं और जिनके सम्मान हुए हैं, उनमें से प्रत्येक, गुणों के आधार पर बढ़े हैं। देवता का वरदान गुण और चिंतन की उत्कृष्टता है। संसार के महापुरुषों में से हर एक सफल व्यक्ति का इतिहास यही रहा है। अनुग्रह की एक ही पहचान है- जिम्मेदारी का होना, समझदारी का होना।
पूजा क्यों करते हैं? पूजा का मतलब एक ही है- इंसानियत का विकास, कर्मों का विकास, स्वभाव का विकास। पूजा के द्वारा वस्तुतः दया मिलती है, शराफत मिलती है, ईमानदारी मिलती है। आदमी को ऊँचा दृष्टिकोण मिलता है। अगर आपने दूसरी पूजा की होगी तो आप भटक रहे होंगे। पूजा आपको इसी तरीके से करनी चाहिए की जो पूजा के लाभ आज तक इतिहास में मनुष्यों को मिले हैं, वह हमको भी मिलने चाहिए। हमारे गुणों का विकास, कर्म का विकास, चरित्र का विकास और भावनाओं का विकास होना चाहिए। देवत्व इसी का नाम है। देवत्व यदि आपके पास आएगा तो आपके पास सफलता आएँगी। हिंदुस्तान के इतिहास पर नजर डालिए, उसके पन्नों पर जो बेहतरीन आदमी दिखाई देते हैं, वे अपनी योग्यता और अपनी विशेषता के आधार पर महान बने हैं। महामना मालवीय जी का नाम सुना है आपने, कितने शानदार व्यक्ति थे वे। उन पर देवताओं का वरदान बरसा था और छोटे आदमी से वे महान हो गए।
क्रमशः.