Sunday, November 13, 2011

पहले दो, पीछे पाओ

यह विचारणीय प्रश्न है कि महापुरुष अपने पास आने वालों से सदैव याचना ही
क्यों करता है? मनन के बाद मेरी निश्चित धारणा हो गई कि त्याग से बढ़कर
प्रत्यक्ष और तुरंत फलदायी और कोई धर्म नहीं है। त्याग की कसौटी आदमी के
खोटे- खरे रूप को दुनिया के सामने उपस्थित करती है। मन में जमे हुए
कुसंस्कारोँ और विकारोँ के बोझ को हल्का करने के लिए त्याग से बढ़कर अन्य
साधन नहीं हो सकता।
आप दुनिया से प्राप्त करना चाहते हैं, विद्या, बुद्धि संपादित करना चाहते
हैं, तो त्याग कीजिए। गाँठ में से कुछ खोलिए। कोई नियामत लूट के माल की
तरह मुफ्त नहीं मिलती। दीजिए, आपके पास पैसा, रोटी, विद्या, श्रद्धा,
सदाचार, भक्ति, प्रेम, समय, शरीर जो कुछ हो, मुक्त हस्त होकर दुनिया को
दीजिए, बदले में आपको बहुत कुछ मिलेगा। गौतम बुद्ध ने राजसिंहासन छोड़ा,
गाँधी ने बैरिस्टरी छोड़ी, उन्होंने जो छोड़ा था उससे अधिक पाया। विश्व कवि
रवींद्र नाथ टैगोर ने अपनी एक कविता में कहते हैं, "उसने हाथ फैला कर मुझ
से कुछ माँगा। मैंने अपनी झोली में से अन्न का एक दाना उसे दे दिया। शाम
को मैंने देखा कि झोली में उतना ही छोटा सोने का दाना मौजूद था। मैं फूट-
फूट कर रोया कि क्यों न मैंने अपना सर्वस्व दे डाला, जिससे मैं भिखारी से
राजा बन जाता।"
- अखण्ड ज्योति, मार्च- 1940, पृष्ठ 9

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durgadatt c.

Thursday, November 10, 2011

उद्देश्य ऊँचा रखें

मिट्टी के खिलौने जितनी आसानी से मिल जाते हैं, उतनी आसानी से सोना नहीं
मिलता। इसी तरह पापोँ की ओर आसानी से मन चला जाता है, किंतु पुण्य कर्मों
की ओर मन को प्रवृत्त करने में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पानी की धारा
नीचे पथ पर कितनी तेजी से अग्रसर होती है, किंतु यदि पानी ऊँचे स्थान पर
चढ़ाना हो तो, कुछ विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है।
बुरे विचार, तामसी संकल्प बड़ा मनोरंजन करते हुए मन में घर बना लेते हैं
और साथ ही अपनी मारक शक्ति को भी ले आते हैं। स्वार्थपूर्ण नीच भावनाओं
का वैज्ञानिक विश्लेषण कर के पता चला है कि वे काले रंग की छुरियोँ के
समान तीक्ष्ण एवं तेजाब की तरह दाहक होती हैं।
विचारों में भी पृथ्वी आदि तत्वों की भाँति खींचने और खिँचने की विशेषता
होती है। स्थान मिलने पर अपनी भावना को पुष्ट करने वाले एक ही जाति के
विचार उड़ उड़ कर एकत्रित होने लगते हैं। यह तथ्य बुरे, तामसी विचार और भले
विचार सभी के संबंध में सत्य है।
जिन्होंने बहुत समय तक बुरे, तामसी और स्वार्थपूर्ण विचारों को अपने मन
में स्थान दिया है, उनके लिए इन विचारों को बाहर निकालना बहुत कठिन होता
है और ऐसे लोगों को चिंता, भय और निराशा जैसी परेशानियों का शिकार होना
ही पड़ेगा।

Sunday, November 6, 2011

उठो! हिम्मत करो

स्मरण रखिए, रुकावटें और कठिनाइयाँ आपकी हितचिंतक हैं। वे आपकी शक्तियों
का ठीक- ठीक उपयोग सिखाने के लिए हैं। वे मार्ग के कंटक हटाने के लिए
हैं। वे आपके जीवन को आनंदमय बनाने के लिए हैं। जिनके रास्ते में
रुकावटें नहीं पड़ीं, वे जीवन का आनंद ही नहीं जानते। उनको जीवन का स्वाद
ही नहीं आया। जीवन का रस उन्होंने ही चखा है, जिनके रास्ते में बड़ी- बड़ी
कठिनाइयाँ आई हैं। वे ही महान आत्मा कहलाए हैं, उन्हीं का जीवन, जीवन
कहला सकता है।
उठो! उदासीनता त्याग दो। प्रभु की ओर देखो। वे जीवन के पुंज हैं।
उन्होंने आपको इस संसार में निरर्थक नहीं भेजा है। उन्होंने जो श्रम आपके
ऊपर किया है, उसको सार्थक करना आपका काम है। यह जीवन तभी तक दुःखमय दिखता
है, जब तक कि हम इसमें अपना जीवन होम नहीं करते। बलिदान हुए बीज पर ही
वृक्ष का उद्भव होता है। फूल और फल उसके जीवन की सार्थकता सिद्ध करते
हैं।
सदा प्रसन्न रहो। मुसीबतोँ का खिले चेहरे से सामना करो। आत्मा सबसे बलवान
है, इस सच्चाई पर दृढ़ विश्वास रखो। यह विश्वास ईश्वरीय विश्वास है। इस
विश्वास द्वारा आप सब कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं। कोई कायरता आपके
सामने ठहर नहीं सकती। इसी से आपके बल की वृद्धि होगी। यह आपकी आंतरिक
शक्तियों का विकास करेगा।
- अखण्ड ज्योति, फरवरी 1940, पृष्ठ 9