ये घटना मेरे स्कूली शिक्षा के समय की है। हम सहपाठियोँ में कई मेरे गाँव के ही थे। हममें से कई वैसे तो अलग अलग स्कूलों में पढ़ते थे लेकिन स्कूल से लौटने के बाद साथ ही एक साथ ही खेलते थे।
उन दिनों हमारे गाँवों में सहकारी दुकानें थीं जिन्हें गाँव के लोग 'कोऑपरेटिव' भी कहते थे। इस दुकान से गाँववासियोँ को सस्ते दरों पर कपड़ा, शक्कर आदि मिलता था। मुझे याद है पिताजी हम दो भाइयों के लिए हमारे गाँव की दुकान से कपड़ा लाए थे जो काफी टिकाऊ था। हम सहपाठियोँ में से एक के पिताजी उस दुकान पर कार्यरत थे। इलाके के एक प्रभावशाली श्रीमंत के के यहाँ शादी थी सो उनके अतिथियों के सत्कार के लिए बनने वाले भोजन के लिए काफी मात्रा में शक्कर की आवश्यकता थी। मैं सिर्फ शक्कर की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि इसके अलावा उस दुकान में उनकी हैसियत के अनुसार और कुछ नहीं था। उनके वफादार चमचे (माफ करिएगा) अधिकारी ने गाँव के हिस्से की शक्कर उन श्रीमंत के हवाले कर देने का आदेश दे दिया। किंतु मेरे मित्र के पिताजी जो उस समय उस दुकान पर थे, ऐसा करने से मना कर दिया। किंतु उनकी ये ईमानदारी उनके लिए काफी महँगी पड़ी। दूसरे दिन उस दुकान पर औचक निरीक्षण हुआ! काफी बड़ी मात्रा में हेराफेरी पाई गई! उन्हें निलम्बित कर दिया गया और जाँच के आदेश दे दिए गए। काफी गहरा सदमा पहुँचा उन्हें। उनका वेतन उनके आमदनी का बड़ा हिस्सा था जो अब बंद हो चुका था। घर में तीन बच्चे बड़े हो रहे थे। उनका खर्च बढ़ रहा था। जाँच चल रही थी और उन्होंने अदालत की शरण भी ली। किंतु सदमे की मार और जिंदगी की लड़ाई ने उन्हें ज्यादा दिन जीने नहीं दिया। कहते हैं शौच के समय आदमी सबसे गहराई से सोचता है, शौच करते समय ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे। परिवार पर तो पहले जैसे मुसीबतोँ का पहाड़ टूट पड़ा। घर के खर्च जुटाएँ या अदालत का। उत्तर प्रदेश और बिहार में लड़की की शादी भी एक मुसीबत ही कही जा सकती है। बच्चों की पढ़ाई छूट गई। उन्हें घर के खर्च के लिए पहले खेतों में काम करना पड़ा। आखिर मुकदमे में मेरे मित्र की जीत हुई किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पढ़ाई बीच में छूट जाने के बाद उन्हें पंजाब जा कर मजदूरी करनी पड़ी। हमारे सहपाठियोँ में आज एक भी बेरोजगार नहीं है किंतु इस हादसे ने दो होनहार बच्चों को जबरन मजदूर बना दिया। मुझे खुशी है कि आज मेरे मित्र अपने मेहनत से अपनी गाड़ी फिर से लाइन पर ला पाए हैं। मेरे सहपाठी मित्र आज हीरो साइकिल में कार्यरत हैं।
ये एक सच्ची घटना है जिसने हमारे युवा होते मन पर गहरा प्रभाव डाला।
एक युवा जिसके कुछ सपने हैं, कुछ विशिष्ट विचार एवं संकल्पनाएँ हैं, जिसकी कुछ प्रतिमाएँ अभी सामने आनी बाकी हैं और जिसकी चाहत है अपने चारों ओर एक सकारात्मक बदलाव लाने की। यह मेरी डिजिटल डायरी है जिसे आप भी पढ़ सकते हैं। वैसी बातें जिन्हें मैं सबको बताना चाहूँ या जिन्हें व्यक्त करने के लिए एक अदद मित्र की जरूरत पड़े दोनों ही इसमें मिल जाएँगी। हो सकता है इसके कुछ पोस्ट से आप सहमत न हों लेकिन यह मेरे पोस्ट के समय विशेष पर मेरी विचारधारा को इंगित करता है और आप इसे इसी नजरिये से लें। धन्यवाद।
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